Monday 19 March 2012

क्राँति का आवाहन

न लिखो कामिनी कवितायें, न प्रेयसि का श्रृंगार मित्र।
कुछ दिन तो प्यार यार भूलो, अब लिखो देश से प्यार मित्र।
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अब बातें हो तूफानों की, उम्मीद करें परिवर्तन हो,
मैं करूँ निवेदन कवियों से, लिख क्रांति के अंगार मित्र।
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मुझको लगता है राजनीति, बन गई आज है वेश्यालय,
तलवार बनाकर कलमों को, करते इनका संहार मित्र।
……….
जितनी भी क्राँति हुई अब तक, कवियों की प्रमुख भूमिका थी,
कवियों में इतनी ताकत है, वो बदल सके सरकार मित्र।
……….
क्या कर्ज लिये मर जायेंगे, जो भारत माँ के हम पर हैं,
क्यों न हम ऐसा कर जायें, चुक जाये माँ उपकार मित्र।
……….
ये जीवन बहुत कीमती है, मुझको क्या सबको मालुम है,
क्यों जाया जीवन मूल्यवान, ये बातों में बेकार मित्र।
……….
हम लिखें क्राँति की रचनायें, निश्चित ही परिवर्तन होगा,
हम सोचे सब परिवर्तन की, सब करें क्राँति हुँकार मित्र।
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Wednesday 15 February 2012

नेता- कुत्ता और वेश्या (भाग-2)

पार्टी नेता के घर में थी,
देश के नेता कई सम्मिलित।
कुछ नशे में चूर हो झूमें,
कुछ अधिक पीकर हूये थे चित।।
हादसा किन्तु हुआ था एक,
जितने थे नेता गए घबरा।
दो विरोधी दल के थे नेता,
एक दूजे से गए टकरा।।
एक बोला तूँ बड़ा उल्लू,
दूजा बोला तूं बड़ा कुत्ता।
एक बोला तूं फरेबी है,
दूजा बोला तूं बड़ा झुट्टा।।
एक आया था वहाँ कुत्ता,
पीके मदिरा था बड़ा मदमस्त।
नेता से तुलना सुनी अपनी,
था हुआ कुत्ते को भारी कष्ट।।
वो तुरत भौं भौं लगा करने,
फिर अचानक वह पड़ा गुर्रा।
वह नशे में कुछ अधिक ही था,
उसने पी ली थी अधिक ठर्रा।।
आपने तुलना गलत है की,
है कठिन अपमान यह सहना।
मानता हूँ वह नशे में था,
किन्तु जायज उसका था कहना।।
अपनी तुलना मुझसे मत करिये,
यह मुझे गाली सी है लगती।
गालियाँ हमको नहीं आतीं,
गालियाँ तुमको हि हैं फबती।।
मास बारह पूँछ पुल्ली में,
किन्तु हम सीधी न करते हैं।
लीग पर अपनी चले आये,
हम नहीं उसको बदलते हैं।।
पर तुम्हारा क्या भरोसा है,
आज इस दल दूसरे में कल।
गंदगी इतनी यहाँ पर है,
राजनीति बन गई दलदल।।
बन गई गाली ये नेता शब्द,
यह मुझे गाली बहुत अखरी।
खाते हो तुम लोग जिसमें ही,
छेद करते हो उसी पतरी।।
ये वफा होती प्रति उसके,
हम तो जिसकी भी ये खाते हैं।
जान उस पर करते न्यौछावर,
फर्ज हम अपना निभाते हैं।।
देश से तुमको मिली इज्जत,
देश को तुम सबने है लूटा।
शब्द नेता था कभी भूषण,
शब्द नेता बन गया झूटा।।
नाम कुत्ता है वफादारी,
तुम हमारे सामने क्या हो।
तुम तो धोखेवाज हो केवल,
सच कहूँ तुम वेश्या या हो।।
कुन्तु वेश्याओं का भी है धर्म,
धर्म सब अपना निभाते हैं।
कत्ल कर देते हैं रिश्तों का,
राजनीति में तो पाते हैं।।

Wednesday 8 February 2012

बहस


1. बहस चीज ऐसी है इक, जिसे न सकते जीत।
   जीत  में होती  हार है, जीत से हम भयभीत।।

2. सब कुछ मैं जानूँ कहे, बहुत बड़ा बेवकूफ।
   किन्तु उससे बड़ा वह, बहस करे जो खूब।।

3. जितनी बहसें जीतते, उतने कम हों मित्र।
    अपने भी न रहोगे, कितनी बात विचित्र।।

4. बहस  के  माने  लड़ी  ज्यों, हारी  हुई  लड़ाई।
  जीत मिली तो लाभ क्या,कीमत अधिक चुकाई।।

5. यह जज्वाती युद्ध है, बाद हृदय में दर्द।
    अर्थ हीन जो युद्ध हो, दोनों का हो हर्ज।।

6. क्या ठीक मतलब नहीं, कौन ठीक है अर्थ।
    निकले तंग दिमाग से, बहस इसीसे व्यर्थ।।

7. हो दिमाग छोटा बहुत, मुँह हो मगर विशाल।
    करने का उससे बहस, तत्क्षण त्यागें ख्याल।।

8. दूर सुअर से ही रहें, कभी करें न युद्ध।
    गंदे होंगे आप ही, सुअर तो होगा शुद्ध।।

9. बहस व्यर्थ ही मूर्ख से, तीखे शब्द कठोर।
   जोर-जोर से बोलना, सभी तर्क कमजोर।।

10.बहस बहस का विषय है, करने का यह नाहिं।
    बहस व्यर्थ न कीजिये, मित्र न खोना चाहि।।

11.बहस बहुत विस्तृत विषय, मेरा सीमित ज्ञान।
    बहस  जीतने से मिले, अंत में बह अभिमान।।

12.बहस जीत कर आपके, क्या उपलब्धि पास।
    बहस करे  जो  व्यर्थ में, मित्र  रहे न खास।।

13.समय काटने के लिये, बहस करें कुछ लोग।
    बिना बहस के बैचेन वो, लगे बहस का रोग।।

14.व्यर्थ विषय पर बहस हो, मुझे न अंत दिखाय।
    अंत  बहस   का तभी हो, मित्र शत्रु बन जाय।।

15.जहाँ  व्यर्थ  की  बहस  हो, वहाँ रहें खामोश।
    यह अनुभव की बात है, कभी न हो अफसोस।।

Sunday 22 January 2012

क्या यही गणतंत्र है

गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाओँ के साथ-
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क्या यही गणतंत्र है, यह किस तरह गणतंत्र है।
कैसे कहूँ गणतंत्र है, यह तो नहीं  गणतंत्र  है।।
जीतते  नेता  यहाँ  पर, जाति  के  आधार  पर,
जीतकर  सेवा  करेंगे , कर   रहे  व्यापार  पर,
मेरे समझ आती  नहीं  है यह व्यवस्था देश की,
वोट  बहुमत  में  न पाया, बन गई सरकार पर।
नापसंदी  का  हमें,  अधिकार  क्योंकि  है  नहीं,
यह समस्या तो जटिल है,  चिंतनिय  अत्यंत है।
क्या यही गणतंत्र है, यह किस  तरह गणतंत्र है।।
जिसका बड़ा अपराध है उसको बड़ा मिलता है पद,
अफसोस कि यह बात है, अपराधि  आधे  सांसद,
अपराध पहले कीजिये, फिर  राजनीति  में  घुसो,
अब राजनीति बन गई, अपराधियों का तो कवच।
कल तलक कैदी बने  थे, सांसद  हैं  आज  वो,
केश  उनपर  सैकड़ों  हैं, जेल  में  जो बंद है।
क्या यही गणतंत्र है, यह किस तरह गणतंत्र है।।
चल रहे अब भी  यहाँ,  अंग्रजों  के  कानून हैं,
सरकार में बैठा है वो, जिसने किया था खून है,
कल तलक गुण्डा था अपने, क्षेत्र का माना हुआ,
लग रहा संसद  में  जाके, वह बड़ा मासूम है।
होगी न  इसको  सजा, हत्याओं के अपराध से,
कानून  मंत्री  बनने  का, उसने रचा षडयंत्र है।
क्या यही गणतंत्र है,यह किस तरह गणतंत्र है।।
अधिकांश वह मंत्री बने, कोई न  कोई  दाग है,
जुर्म की दुनियाँ मे उनकी, ये अभी भी धाक है।
जानते हैं  सब  उसे,  चारा  घुटाला  था  किया,
बन गया है वह भी मंत्री, पशुधन का ये विभाग है।।
अगले चुनावों के  लिये, पैसा  तो  उसको चाहिये,
जानता  है  लूटने  का,  वह   पुराना   मंत्र  है।
क्या यही गणतंत्र है, यह किस तरह गणतंत्र  है।।
इक तरफ  तो  बोलते  है,  नारियाँ  पुजतीं  यहाँ,
मुझको तो हर घर में पीड़ित, नारियाँ दिखती यहाँ।
हर  रूप  ये  नारियों  का, हो  रहा  शोषण बहुत,
सिर्फ धन  के ही लिये क्यों, नारियाँ जलती यहाँ।।
हर धर्म में  हर  जाति  में, दहेज प्रचलन है बहुत,
वैसे तो ये कानून में, इस  पर  कड़े  प्रतिबंध  है।
क्या यही गणतंत्र है, यह  किस  तरह  गणतंत्र है।।
हमसे  आगे  देश  क्यों, आजाद  हमसे  बाद  हैं,
वोट  देते  ही  समय, लगता  कि हम आजाद हैं।
जनवरी छब्बीस को या, जो कि है पन्द्रह अगस्त,
हम  हुये  आजाद  थे, करते  ये केवल याद हैं।।
आजाद भारत है हुआ, जनता मगर  परतंत्र  है।
क्या यही गणतंत्र है, यह किस तरह गणतंत्र  है।।
राजनीति चल रही, अब  भी  यहाँ  परिवार  की,
हैसियत कुछ भी नहीं,  उसके  लिये  सरकार की।
जब टिकट बँटने को आये, नाम तो  कई ने दिये,
निकली  है  नेताओं  के, लिस्ट  रिश्तेदार  की।।
वोट  देने  की  हि  केवल,  लोकशाही  है  मिली,
पाँच सालों के लिये फिर, राजा  का  ही  तंत्र  है।
क्या यही गणतंत्र है, यह  नाम  का  गणतंत्र  है।।
बेटा-बेटी में अभी भी, इतना  क्यों  अंतर  अधिक,
क्यों नहीं अब तक  हुई  स पर पहल कोई सार्थक।
सिर्फ हम बातें ही  करते, पर  अमल  करते  नहीं,
कानून में अधिकार सब, परिवार में मिलते न हक।।
एक बेटी  की  नहीं, पीड़ा  है  यह  हर  एक  की,
इस  समस्या  का  मुझे, आये  नजर  न अंत है।
क्या यही गणतंत्र है, यह किस तरह  गणतंत्र  है।।

Monday 2 January 2012

     आयुर्वेदिक दिनेश के दोहे भाग-2
1.जहाँ  कहीं भी आपको,काँटा कोइ लग जाय।
  दूधी  पीस  लगाइये, काँटा    बाहर   आय।।
2.मिश्री  कत्था तनिक सा,चूसें मुँह  में  डाल।
  मुँह में छाले  हों अगर,दूर  होंय  तत्काल।।
3.पौदीना  औ  इलायची, लीजै  दो-दो  ग्राम।
  खायें  उसे  उबाल  कर, उल्टी  से आराम।।
4.छिलका  लेंय  इलायची,दो या तीन गिराम।
  सिर दर्द मुँह  सूजना, लगा  होय  आराम।।
5.अण्डी पत्ता वृंत पर, चुना  तनिक मिलाय।
  बार-बार तिल पर घिसे,तिल बाहर आ जाय।।
6.गाजर  का  रस  पीजिये, आवश्कतानुसार।
  सभी जगह उपलब्ध यह,दूर करे  अतिसार।।
7.खट्टा  दामिड़ रस, दही,गाजर  शाक पकाय।
  दूर करेगा अर्श को,जो  भी  इसको  खाय।।
8.रस अनार की कली का,नाक बूँद दो  डाल।
  खून बहे जो नाक से, बंद  होय  तत्काल।।
9.भून मुनक्का शुद्ध घी,सैंधा नमक  मिलाय।
  चक्कर आना बंद हों,जो भी  इसको खाय।।
10.मूली की शाखों का रस,ले निकाल सौ ग्राम।
   तीन बार दिन में पियें, पथरी  से  आराम।।
11.दो चम्मच रस प्याज की,मिश्री सँग पी जाय।
   पथरी केवल बीस दिन,में गल बाहर  जाय।।
12.आधा कप अंगूर  रस, केसर  जरा  मिलाय।
   पथरी से आराम हो, रोगी  प्रतिदिन  खाय।।
13.सदा करेला रस पिये,सुबहा  हो  औ  शाम।
   दो चम्मच  की  मात्रा, पथरी  से  आराम।।
14.एक डेढ़ अनुपात कप, पालक  रस  चौलाइ।
   चीनी सँग लें बीस दिन,पथरी दे न दिखाइ।।
15.खीरे का रस लीजिये,कुछ दिन तीस  ग्राम।
   लगातार  सेवन  करें, पथरी  से  आराम।।
16.बैगन भुर्ता बीज बिन,पन्द्रह दिन गर खाय।
   गल-गल करके आपकी,पथरी बाहर  आय।।
17.लेकर कुलथी दाल को,पतली मगर  बनाय।
   इसको नियमित खाय तो,पथरी बाहर आय।।
                (आयुर्वेदिक पुस्तकों के आधार पर)