Thursday 22 December 2011

जनता बड़ी या संसद

हमने इन्हें बनाया हमसे, बड़े नहीं यह लगते।
बड़ी नहीं जनता से संसद, ऐसा हम कह सकते।।
जन से जन को जन के द्वारा, बनती है यह संसद।
इन नेताओं की लूटों को, अब न हम सह सकते।।
संसद है सर्वोच्च तभी तक, जब तक जन की माने।
जनता से विपरीत चले जो, वह संसद ढह सकते।।
संसद में कई हैं अपराधी, कई हैं चोर लुटेरे।
संसद नहीं जेल भिजवाओ, अब न चुप रह सकते।।

Tuesday 20 December 2011

यदि ईश्वर नहीं होता

हमें ईश्वर की जरूरत क्यों है,
जब-जब ईश्वर की चर्चा होती है,
यह प्रश्न खड़ा हो जाता है मेरे सामने.
प्रश्नवाचक चिन्ह बनकर।
वह नहीं होता तो शायद,
अंग्रेज ने सैकड़ों वर्ष तक,
भारत पर शासन नहीं किया होता।
वह नहीं होता तो शायद,
धर्म के नाम पर साम्प्रदायिक हिंसा नहीं हुई होती।
वह नहीं होता तो शायद,
नहीं बनता पाकिस्तान और बंगलादेश।
वह नहीं होता तो शायद,
दलितों को नहीं किया जाता बहिष्कृत।
नहीं लगते उनपर अनेकोंनेक प्रतिबंध।
न ही होते वह अपने मूलभूत अधिकारों से बंचित।।
वह नहीं होता तो शायद,
भोपाल में नहीं होता गैस काण्ड।
वह नहीं होता तो शायद,
नहीं फैलता सारे विश्व में आतंकवाद।
वह नहीं होता ता शायद,
हम नहीं बँटते धर्म, जाति और उपजातियों में।
वह नहीं होता तो शायद,
धर्म जाति के नाम पर नहीं होता आरक्षण।
वह नहीं होता तो शायद,
नहीं मिलता इन राजनेताओं को,
धर्म एवं जाति-आधारित राजनीति करने का अवसर।।

Monday 19 December 2011

धर्म और शराब

1-माँ ने कहा था एक दिन, पीना नहीं शराब।
इसकी वजह से घर का हो, माहौल ये खराब।।
मै नहीं पिऊँगा कभी, धर्म की मदिरा,
धर्म ने बहाया यहाँ, खून बेहिसाब।।
2-बोतल वही शराब फर्क नाम में केवल।
नशा है रंग एक सा, बदले हुये लेबल।।
कोई वियर शोपेन है, ठर्रा कोई व्हिस्की।
धर्म को मैं मानता अज्ञान का दलदल।।
3-मंदिर हो गुरुद्वारा हो या मस्जिद या चर्च है।
सब हैं शराबखाने इन सबमें क्या फर्क है।।
बिन तर्क औ प्रमाण के कहता नहीं मैं कुछ।
जो सच लगा वही लिखा, इसमें क्या हर्ज है।।
4-धर्म का इतिहास देखो खून से लिखा।
दंगे फसादों में मुझे बस धर्म ही दिखा।।
धर्म ने दलितों का सदा ही किया शोषण।
धर्म की शिक्षाओं को मुझको न तू शिखा।।
5-धर्म ने ही बाबरी मस्जिद को गिराया।
धर्म ने ही सोमनाथ को था लुटाया।।
धर्म की वजह से हममें एकता न थी।
हम भी थे वीर धर्म ने गुलाम बनाया।।
6-धर्म इमारत खड़ी घृणा की नींव पर।
धर्म ने ईसा को चढ़ाया सलीब पर।।
धर्म ने गैलेलियो को यातनाये दी।
धर्म ने सुकरात से कहा तू पी जहर।।
7-धर्म ने नारी आँखों में दिया बस नीर।
धर्म ने हरने की सोची द्रोपदी का चीर।।
सब चाहते हैं कि रहें सुकून चैन से।
दो भाईयों के बीच धर्म खीचता लकीर।।

Sunday 18 December 2011

मैं हूँ खद्दर

जो भी मुझे पहन लेता है उसके दूर दरिद्दर।
मैं हूँ खद्दर, मैं हूँ खद्दर, मैं हूँ खद्दर खद्दर।।
उल्लू गधा गिद्ध औ गीदड़, कौआ बगला कोई।
नहीं रहेगा रूप पुराना, केवल लीडर होई।।
बीस साल का पहने चाहे, पहने उम्र पचत्तर।
मैं हूँ खद्दर..........                                        
नीला पीला रंग गुलाबी, काला कीचड़ डालो।
चढ़े न मुझपर दूजा कोई, कैसे भी अजमालो।।
मिले सलामी कदम-कदम पर, तलुआ चाटे अफसर।
मैं हूँ खद्दर...........                                                  
कदर जानता है जो मेरी, वही मुझे अजमाये।
मुझे पहनने वालों ने ही, हैं डाके डलवाये।।
तुझसे नहीं पुलिस कुछ बोले, बलत्कार या कत्तल।
मैं हूँ खद्दर.............                                             
रिश्वत खाओ और कमीशन, चाहे करो दलाली।
कोई न कहने वाला होगा, करतूतें हों काली।।
एक फोन से काम बनेगा, घर में आये दफ्तर।
मैं हूँ खद्दर..............                                    
आया oder सड़क बनेगी, कागज पर बनवा लो।
क्यों डरते हो मैं हूँ तन पर, सारा पैसा खालो।।
लगा न डामर, न मजदूरी, लगा एक न पत्थर।
मैं हूँ खद्दर................                                   
खूब चलेगी ठेकेदारी, दो नम्बर के धन्धे।
नकली बिल भी पास करेंगे, अफसर होकर अंधे।।
मुझसे कितने बने विधायक, कितने बने मिनिस्टर।
मैं हूँ खद्दर मैं हूँ..........                                          

Wednesday 14 December 2011

इन्हें जगाने वाला कौन

सोये हैं नवयुवक देश के, इन्हें जगाने वाला कौन।
भ्रष्टाचार की भीषण आँधी, इसे रुकाने वाला कौन।।
भ्रष्टाचार एड्स बीमारी, नेताओं ने दी हमको।
इस बीमारी से भारत को, मुक्त कराने वाला कौन।।
भ्रष्टाचारियों के चंगुल में, देश हमारा कैद हुआ।
फिर क्राँति का पथ निर्मित कर, खून बहाने वाला कौन।।
यहाँ व्यवस्था की मशीन की, भ्रष्टाचार तो ग्रीस बनी।
इस मशीन के बदले कोई, नई लगाने वाला कौन।।
कहें आर्थिक संकट आया, इसीलिये मँहगाई है।
भरी तिजोरी नेताओं की, उसे चुराने वाला कौन।।
अरबों के तो हुए घुटाले, काला धन है विदेशों में।
उस काले धन को भारत में, वापस लाने वाला कौन।।
कहते काम दिया लाखों को, पर बेकारी ज्यों की त्यों।
नाम बताते नहीं किसी का, सर्विस पाने वाला कौन।।
मुद्दा पास नहीं होता जब, धर्म जाति की बात करें।
फिर भी कैसे जीत गये यह, इन्हें जिताने वाला कौन।।
बात-बात में आरक्षण की, बात ये नेता करते हैं।
देश के हित में वोट दें इनको, ये समझाने वाला कौन।।
जात-धर्म के नाम से अपनी, करें सियासत नेता-गण।
इस चुनाव में नेताओं को, अरे हराने वाला कौन।।
कामयाब हम होंगे रटते, भ्रष्टाचारी बनने में।
'रंग दे बसंती चोला मेरा', ऐसा गाने वाला कौन।।
मंदिर मस्जिद को तुम छोड़ो, औ कवितायें श्रंगारी।
श्रमिक, किसान और दलितों की, व्यथा सुनाने वाला कौन।।
दीप जला था आजादी का, वीरों के शोणित से जो।
दीप जला हो गया अँधेरा, उसे जलाने वाला कौन।।
राजनीति बन गई खिलौना, गुण्डों और डकैतों की।
प्रजातंत्र के ये हत्यारे, इन्हें मिटाने वाला कौन।।